नाभिषेको न संस्कारः सिंहस्य क्रियते वने श्लोक का अर्थ
नाभिषेको न संस्कारः सिंहस्य क्रियते वने ।
विक्रमार्जितसत्वस्य स्वयमेव मृगेन्द्रता ||
सिंहका वन में कोई राज्याभिषेक नहीं करता और कोई उसे राज्यदीक्षा नहीं देता। अपने लिये अपने ही भुजबल से सम्मानित पद का उपार्जन करने वाला सिंह स्वयमेव मृगेन्द्र बन बैठता है ।
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